मंगलवार, 12 जून 2018

फ़िल्म आईना है उसे नही समाज को साफ करें

क्या होता है जब घर पे माँ पिता के बीच संबंध अच्छे नही होते लेकिन वो अपने बच्चों से उसे छुपाते हैं मगर बच्चे सब जानते हैं और एक मुद्दत से वो मां पिता के प्रेम को तरसते हैं और जब वो बच्चा कोई लड़की हो तो भावुकता की बात ज्यादा होती है। वो लड़की किसी से प्यार करती है और जब उसके साथ रहने के लिए वो लड़का शादी की बात करता है तब वो लड़की इस लिए घबरा जाती है क्योंकि बचपन से उसने पति पत्नी के रूप में जो संबंध देखा है वो उसके लिए बहुत ही तकलीफ देय है वो परिवार के आपसी ताने बाने को समझने में असमर्थ है और इस लिए उसके अंदर एक भय बना हुआ है कि कहीं बाद में जो आज सब खूबसूरत रिश्ते दिख रहे वो बदल न जाएं और इनके अंदर की खूबसूरती और प्रेम खत्म न हो जाये और संबंध न खत्म हो जाये। क्या होता है जब एक लड़की जो रोज़ पति पत्नी के झगड़े और टूटते संबंधों को देखती है क्योंकि वो एक लॉयर है। उसके अंदर एक भय होता है कि वो जिस लड़के से शादी करेगी कहीं वो भी ऐसा तो नही होगा। और वो भी तब जब उसके बचपन के प्यार जिसके लिए वो अपना शहर तक छोड़ के गई हो वो उसे धोखा दे चुका है। इधर मां की एक ही ख्वाहिश है कि वो बस शादी कर के। ये सब बातें वो बोल नही पा रही। एक लड़की जिसे सम्मान देने वाला और प्यार करने वाला एक लड़का जिससे वो शादी कर लेती है लेकिन घर भर की दुश्मन हो जाती क्योंकि वो लड़का उसकी जात का तो दूर उसके देश का भी नही है जबकि वो लड़का शायद उसके लिए सबसे बेहतर है और वो हर पल इस दर्द को अपने अंदर समाए जी रही है और कह नही पा रही। क्या होता है जब एक लड़का जिससे एक लड़की बहुत प्यार करती है उससे शादी करती है लेकिन लड़का उसके हर एक एक चीज़ पे उसे टोकता रहता है कपड़े ऐसे पहने ये क्यों करती हो ये क्यों नही करती। काम करो या नही खाने में क्या बनाओ क्या नही हर एक चीज़ पे और जिसके चलते उनका व्यक्तिगत जीवन पूरी तरह से प्रेम विहीन हो जाता है। और इसकी कमी उस लड़की के अंदर उसे तकलीफ देती है और किसी अन्य मर्द के साथ न सो कर हस्थमैथुन कर लेती है तो उसका पति उसे चरित्रहीन की श्रेणी में रख देता है। ये बात वो किसी से नही कहती और पूरा समाज उसका चरित्र प्रमाणपत्र देने लगता है।
ये सब कुछ इस लिए होता है क्योंकि इन सब उलझी ज़िन्दगी के बीच वो चारों लड़कियां खुश रहती हैं अपनी ज़िंदगी को खुल के जीने की पुरी कोशिश करती हैं। शायद इस लिए उन्हें गलत और गंदी लड़कियां कहा गया है।
मगर जरा एक और पहलू देखिए क्या किसी लड़की ने किसी को धोखा दिया। क्या वो किसी का अपमान कर और किसी का इस्तेमाल कर उसे छोड़ देने की इक्षा रखती है। वो बस किसी संबंध को खोना नही चाहती और न यह साबित करना चाहती हैं कि वो संबंधों या व्यक्तियों को वस्तु समझती हैं।
खूबसूरती किसी भी रिश्ते की यह होती है कि वो अपनों से सच बोलती हैं अपने माँ पिता से कुछ नही छुपाती।
एक पहलू और कि वो चारों बेहद ही करीबी दोस्त हैं एक दूसरे में सबकी जान बस्ती है। लेकिन फिर भी अपने जीवन की बहुत सी बातें जो उन्हें तकलीफ देती हैं वो उन्हें भी नही बताती। विचार आपस में मिलते हैं या नही मिलते मगर साथ वो एक दूसरे का नही छोड़ना चाहती।
एक और पहलू कि इन सब जीवन की जद्दो जहद के बीच वो तमाम गलतियां भी करती हैं। जिनके लिए उनको खुद ही उन गलतियों का एहसास होता है और उनकी पुनरावृति से वो हमेशा ही बचती आई हैं और उनकी सज़ा भी वो खुद को देती हैं।
इन सब के साथ कुछ ऐसे भी पहलू हैं जिनके लिए उन्हें हम और आप गलत कह सकते हैं और गलत कहना सही भी है मसलन भाषा शैली के लिए उनके खानपान के लिए उनकी जिद के लिए। परंतु प्रश्न यह है कि शायद असल जिंदगी में वर्तमान समाज यही तो कर रहा है। और अगर उसे सामने लाने के लिए कोई फ़िल्म उसे वैसा का वैसा ही दिखा दे रहा तो उसमें फ़िल्म बनाने वाले का कोई दोष नही बल्कि यह हमें सोचना है कि आखिर हमने कौन सा समाज बना रखा है जो आज ऐसी फिल्में बनानी पड़ रही। क्यों जो कृत्य पुरुषों के हमेशा से असामाजिक
कहे जाते थे आज महिलाओं को भी वही करने की आदत हो चुकी है और उसे पुरुष स्वीकारना नही चाह रहा और महिलाएं उसे समानता समझने लगी हैं। विरोध फ़िल्म का या उनके किरदारों न करिए बल्कि जो उसमें दिखाया गया है कि ये समाज में हो रहा उसे सुधारने और खुद से बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिए।

प्रेम को जाति में न बांधे बस यह देखें कि हमारे बच्चे खुश किसमें हैं। लड़कों को चाहिए कि वो लड़कियों के खामोश दर्द को समझें। लड़कियों को भी लड़कों की खामोशी समझनी होगी।
बागबान फ़िल्म में जब लड़की देर रात क्लब जाती है और इससे उसके घर वालों को कोई फर्क नही पड़ता लेकिन जिस लड़के के साथ वो जाती है वो उसकी इक्षा के विरुद्ध उससे संबंध बनाना चाहता है (नशे की हालत में) और लड़की उसका विरोध करती है। तब लड़का गलत होता है ठीक उसी प्रकार से वीरे दी वेडिंग में जब लड़की लड़के को कार्यक्रम के बीच में उसकी इक्षा के विरुद्ध किस करना चाहती है तो यहां पर लड़का गलत नही बल्कि गलती लड़की की है और यह बात कहना कि जाओ तुम मम्मा बॉय हो तुम उन्ही से शादी कर लो किसी भी नज़र से सही नही कहा जा सकता। जिस प्रकार से आप की इक्षाएँ होती हैं ठीक उसी प्रकार से लड़कों की भी मर्ज़ी और उनकी इक्षा का खयाल आप को रखना होगा। इसी फिल्म में जिस प्रकार से करीना कपूर से शादी करने वाला लड़का उसका उसके हर फैसले में साथ देता है वैसे ही एक अंग्रेज लड़के के हर फैसले पे लड़की उसका साथ देती है।
फ़िल्म में यह समझाया गया है कि हर इंसान गलती करता है परंतु उसे गलती सुधारने और बदलाव करने का मौका दिया जाए तो निश्चित ही परिणाम सकारात्मक होगा। बस हमें उनपर पूर्ण भरोसा करना होगा।
फ़िल्म में आप को लगता होगा कि प्रेम का मतलब सिर्फ सेक्स बताया गया है परंतु ऐसा नही है। यह समाज में हो रहा ऐसा दर्शाया गया है। प्रेम में समझ, सम्मान, आदर, भरोसा, संचार और खुशी का होना ज़रूरी है। फिर वो रिश्ता कोई भी हो चाहे भाई भाई का ही क्यों न हो या फिर प्रेमी प्रेमिका का हो।
यह ज़रूर है कि हमें प्रेम को भोग विलास ही नही समझना चाहिए वो ज़रूरत मात्र है और यह ज़रूरत तभी पूरी हो सकती है जब उपरोक्त प्रेम के आवश्यक तत्वों को पूरा किया जाएगा। त्याग की भावना और सामने वाले को सदैव ऊपर उठाने का प्रयास ही रिश्ता मज़बूत करता है।
भाषाशैली पे मेरी आपत्ति है। और समाज को यही बदलाव करना होगा। फिल्में समाज का आईना होती हैं यदि वह आईना आप को गंदा लग रहा तो समाज को खुद को साफ करना होगा वरना आईना है रगड़ते रहिये कपड़े से आप सभी न साफ हो तो एक पत्थर तबियत से उछालियेगा आईना टूट जाएगा। मगर समाज में बदलाव नही आएगा और एक रोज़ ये रूप हमें ही खत्म कर देगा।

- देश दीपक सिंह

रविवार, 8 अप्रैल 2018

भाजपा के जागने का समय

लोक सभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत के बाद बीजेपी कार्यकर्ता एकदम उत्साह से परिपूर्ण दिखे। होना भी चाहिए था। आखिर पहली बार बीजेपी पूर्ण बहुमत से जीती थी। और नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन रहे थे। आम जनता भी मोदी से पूरी उम्मीद लगाये बैठी थी। यह होना लाजमी था आखिर पहली बार चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा गया था। विदेश नीती हो या देश में सरकारी काम में तेजी। नरेन्द्र मोदी ने उसी उम्मीद पर खरा उतरने के लिए तमाम काम भी किये। इसी बीच बीजेपी ने सदस्यता अभियान का टेक्नोलजी से लैस एक प्रोफार्मा तैयार किया। जिसको पुरे देश में बहुत जोर शोर से शुरू किया गया। पुरे देश का बीजेपी कार्यकर्ता इस काम में पूरी तन्मयता के साथ लग गया। और विश्व रिकार्ड कायम करते हुए एक करोड़ से भी अधिक सदस्य बनाये। बीजेपी इस कामयाबी के लिए गिनीज बुक ऑफ़ वर्ड रिकार्ड से भी नवाजी गई। पर इस कार्य में कहीं न कहीं बीजेपी कार्यकर्ता उस मूल कार्य से हट गए जान पड़ते हैं जिसको लेकर वो लोक सभा चुनाव में उतरे थे और जनता ने भी उनसे जिसके लिए उम्मीद लगाई थी। अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद सदस्यता अभियान का जमीनी हाल जानने की कोशिश करेंगे। वह 20 मार्च से अपना यह काम शुरू करेंगे। अमित शाह की सदस्यता अभियान को लेकर गंभीरता पार्टी हित के कुछ मायनों में बहुत अच्छी हो सकती है। पर इसका दूरगामी परिणाम अच्छा हो यह सोचनीय है। आखिर जब पार्टी के सभी कार्यकर्ता सिर्फ सदस्यता अभियान में ही लगे रहेंगे तो उनसे जनता के बीच में काम करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव बेहद नजदीक हैं। जहां सपा अपने आप को दुबारा सत्ता में लाने के लिए तेजी से काम करने की कोशिश कर रही है। बसपा अभी से चुनाव की तैयारियों में लगी हुई है। वहीं भाजपा का सिर्फ सदस्यता अभियान में ही लगे रहना उसके लिए संकट न खड़ा कर दे। इधर प्रदेश सरकार द्वारा कई ऐसे कार्य किये गए जिसके लिए तमाम विरोधी दल सड़कों पर उतरे, ट्रेन रोकी, विधान सभा में विरोध किया। फिर वो चाहे कानून व्यवस्था को लेकर विरोध रहा हो या फिर भूमि अधिग्रहण संसोधन रहा हो। मगर भाजपा सिर्फ सदस्यता अभियान में ही मशगूल दिख रही है। भाजपा को अगर यह लगता है कि जिस तरह से लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में उसे जीत मिली है वैसी ही जीत उसे 2017 के विधान सभा चुनाव में मिलेगी। भाजपा को अभी से जमीनी हकीकत पर उतर कर जनता के बीच में जुटना होगा। वरना 2017 की कुर्सी प्रदेश में आसान नहीं।

देश के मूल को न भूलें


जिस देश ने भारत पर 200 साल तक राज किया हो। जिसने वो हर कदम उठाये जिसे आज भी सुन कर हमारा दिल सिहर उठता है। जिस वक्त हमारा देश गुलामीं की जद में था उस वक्त के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने राष्ट्र पिता महात्मा गांधी को अध नंगा फकीर कह कर मजाक उड़ाया हो। उसी देश में उस अध नन्गे इंसान को सलाम किया जाए। उसकी मूर्ति लगे। और यही नहीं महात्मा गांधी की मूर्ति उसी इंसान के साथ जिसने ऐसा मजाक किया हो। ये सपना भी लगता है और गर्व का समय भी। कुछ ऐसा ही हुआ ब्रिटेन के ऐतिहासिक पार्लियामेंट स्क्वेयर में जहां शनिवार महात्मा गांधी की मूर्ति का अनावरण किया गया। समारोह में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून, वित्त मंत्री अरुण जेटली, महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी और महानायक अमिताभ बच्चन भी शामिल हुए। कांस्य की इस मूर्ति को मशहूर शिल्पकार फिलिप जैक्सन ने तैयार किया है। महात्मा गांधी ऐसे विरले महापुरुष हैं, जिनकी भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका के बेलेवू में स्थित एस्फोर्ड पार्क प्लाजा, अस्ट्रेलिया के केनबरा में स्थित ग्लेब पार्क, चीन के बीजिंग स्थित शाओयेंग पार्क, और रूस के मास्को स्थित स्टेट फारेन लिटरेचर लाइब्रेरी समेत 70 से ज्यादा देशों में मूर्तियां लगी हुई हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड ने कहा कि यह प्रतिमा विश्व राजनीति के सर्वकालिक शिखर पुरुषों में से एक को दी गई शानदार श्रद्घांजलि है। उनकी ज्यादातर शिक्षाएं आज भी बेहद प्रासंगिक और भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी हैं। महात्मा गांधी की इस मूर्ति के कई मायने हैं। ये सिर्फ हमें विश्व में अपने नाम की और ज्ञान की महत्ता को ही नहीं दर्शाता बल्कि इससे हमें भी बहुत शिक्षा मिलती है। आखिर ऐसी क्या वजह है कि आज पूरा विश्व हमारे देश के विचार से प्रभावित हो रहा है। क्या वाकई में हम विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखते हैं। अगर ऐसा है तो इसके लिए हम क्या प्रयास कर रहे। सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने नेताओं के भाषण ही पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए हमे अपने उस मूल को भी पकड़ना होगा जिसके लिए आज भी पूरा विश्व भारत देश का आभार मानता आ रहा है। ब्रिटेन में लगी ये मूर्ति अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से कितनी सही है, यह भारत और ब्रिटेन के संबंधों पर कितना प्रभाव डालेगी। ये तय करना अभी जल्दबाजी होगा। पर इससे हम यह सीख जरूर लें कि कोई भी देश अगर विश्व स्तर पर अपने आप को स्थापित करता है तो वह उसका मूल है, उसका इतिहास है।

तीन साल- दर्द या मरहम

सरकारें आती हैं चली जाती हैं पर हम यहीं रहते हैं। देश के विकास की धारा में या तो हिस्सा बनकर या उसकी उम्मीद के लिए। पर इसका मुख्य कर्ता कौन है? सरकार। उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार को आज तीन साल पुरे हुए। सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाने में जुटी है और विपक्ष नाकामियां। पर इसका अर्थ क्या हुआ? क्या ये दिन भी वैलेंटाइन डे की तरह है कि जिसे अच्छा लगा वो तारीफ करे? जिसे नहीं वो बुराई। खैर ये राजनीति है हमे इसके लाभ और हानि से मतलब नहीं। हमे तो ये जानना है कि क्या 2012 में जो फैसला हमने लिया था वह सही था ? क्या वाकई में हमें जो सपने सपा सरकार ने दिखाए थे, जो संकल्प हमारे सामने लिए थे वो पूरे कर दिए हैं। कुछ पहलुओं पर देखें तो शायद कोशिश की गई है। पर कई ऐसे भी पहलू हैं जहां हमें वाकई धोखा सा लगता है। सरकार की तमाम ऐसी योजनाएं जो शायद सपा का पूर्ण बहुमत से सरकार में आने के मुख्य बिंदु थे उन्हें ही सरकार ने बंद कर दिया। उदाहरण के लिए बेरोजगारी भत्ता, लैपटॉप, टेबलेट, कन्या विद्याधन, आदि। मेट्रो, एक्सप्रेस-वे जैसी योजनाएं जनता को लुभा भी रही हैं। क्या वाकई में सिर्फ इसी के लिए हम सरकार चुनते हैं? शायद नहीं। हमारी ज़रुरत सुरक्षा, बिजली, पानी, रोजगार, जैसी छोटी छोटी चीज़ें हैं जिन्हें देने में अभी भी प्रदेश सरकार पूरी तरह से जनता के भरोसे पर खरी नहीं उतर सकी है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को अपने बेटे पर जितना भरोसा है उतना ही भरोसा प्रदेश की जनता ने भी किया था। पर परिवारवाद से उठ कर शायद इस बार भी सपा नहीं सोंच सकी है। 2017 का चुनाव अब बहुत दूर नहीं है और देश के सबसे बड़े प्रदेश की फिलहाल जो स्थिति बनी हुई है ऐसे में सपा को आत्म मंथन करने की ज़रुरत है। कहीं ऐसा न हो कि अगले विधानसभा चुनाव में सपा को अप्रत्याशित नतीजे देखने को मिलें। आप के बड़े बड़े अच्छे कार्यों पर मूल रूप की खामियां इस कदर भारी पड़ रही हैं जो आप की मुश्किलें बढ़ा देने के लिए काफी हैं। जैसे कि अपराध, परिवारवाद, कोई भी ठोस कदम न उठाना। यादव वाद भी इसका मुख्य कारण है। मुलायम सिंह यादव आप देश के बड़े ही माहिर राजनेताओं में से हैं। ऐसे में आप की सरकार का लगातार गिर रहा ग्राफ आप कि राजनीति पर भी सवाल खड़े कर रही है। जनता को जो भी दर्द मिला हो या उसे मरहम मिला हो। इसका फैसला तो 2017 में होगा। पर आप ज़रुर इसे ध्यान रखें कि अगर अभी नहीं चेते तो जनता फिर कभी शायद ध्यान न दे।

आप का मैं में परिवर्तन

आम आदमी पार्टी यानी कि आप। इसकी परिभाषा जो अरविन्द केजरीवाल ने पार्टी बनाते वक्त दी थी वो कुछ इस तरह थी कि यह आम जनता की पार्टी है। भारत देश के हर इंसान की पार्टी है। आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों के इस विचार पर समीर अनजान का लिखा और हिमेश रेशमिया का गाया वो गाना भी बिलकुल फिर बैठता है “तुम और मैं गर हम हो जाते”। पर हाल ही में पार्टी की अन्तह् कलह को देखते हुए पार्टी की सोंच कुछ इस तरह से जान पड़ती है कि चलो बस हो चूका मिलना, न तुम खाली न हम खाली। योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, अंजलि दमानिया, मयंक गांधी के बाद अब पार्टी की बिहार यूनिट के प्रमुख बसंत कुमार चैधरी ने अपने राष्ट्रीय नेतृत्व पर व्यक्तिवाद और स्वार्थ की संस्कृति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। चैधरी ने कहा, ‘आज पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र की जगह स्वार्थी लोगों ने ले ली है। पार्टी अपने अंत की तरफ तेजी से बढ़ रही है। अब बातचीत का केंद्र ताकतवर नेतृत्व बन गया है। भ्रष्टाचार से दूर रहने और आंतरिक लोकतंत्र जैसी बातें अब अर्थहीन हो गई हैं। पार्टी की तरफ से मोर्चा संभाले वाक्पटुता के धनी कुमार विश्वास का कहना है कि ये लोग पार्टी को बुरी स्थिति में दिखाने के लिए साजिश करते हैं। कुमार विश्वास ने आप के पूर्व विधायक राजेश गर्ग पर भी आरोप लगाए हैं।  विश्वास के अनुसार राजेश गर्ग ने ही इस ऑडियो स्टिंग को मीडिया में रिलीज किया है। उसने ही यह टेप एक पत्रकार को उपलब्ध कराया था। उन्होंने इस बात पर विश्वास जताते हुए कहा कि वे लंबे समय से ऐसे लोगों के बीच काम कर रहे हैं उन्हें ऐसे लोगों से निपटना और ऐसी स्थितियों से उबरना आता है। ये तो बयान हैं। खैर अगर हम पार्टी के बनते वक्त की बात करें तो योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण से विचार विमर्श के बिना कभी भी अरविन्द केजरीवाल ने कोई भी कदम नहीं उठाया था। जिस सोंच और संकल्प के बीच इस पार्टी ने जनता का विश्वास जीता है क्या वह इस अंतर विरोध के बाद बचा रहेगा। क्या पार्टी वाकई में कुछ खास लोगों के ही मध्य सिमट के रह गई है। कुमार विश्वास का यह कहना कि अरविन्द केजरीवाल जब बीमार होते हैं तभी विरोध उत्पन्न होता है। ये कहीं इस बात का इशारा तो नहीं कि अरविन्द केजरीवाल ही एक मात्र माध्यम हैं जो इन सब को एक साथ बांधे हुए हैं। वरना इस दल में कोई भी लोकतंत्र या एकमत विचार का समर्थक नहीं है।

विरोध, बंद नहीं साथ खोलने का काम कब

पुलिस गलत, अधिवक्ता गलत, राजनीति गलत, गुस्सा इतना कि देश पूरा पटरी से उतर सा गया है। पुलिस और वकील की एक लड़ाई। जिसमें शायद उन दोनों के पडोसी का भी कोई मतलब न रहा होगा। पर आज पूरा देश इसका दंश झेल रहा। वकील साहब न जाने कितने ऐसे बेगुनाह होंगे जिसे जेल से सिर्फ इस लिए नहीं रिहा किया जा रहा है क्योंकि आप काम नहीं कर रहे। आप का गुस्सा है कि मेरे एक अधिवक्ता भाई को गोली मारी गई है और वो मर गया है। बेशक उस पुलिस वाले को सजा मिलनी चाहिए। आखिर वो रिवाल्वर लेकर कचहरी में आया कैसे। और फिर झगडा हुआ भी आप से तो गोली मारी वो भी गलत। आप तो कानून के संरक्षक हैं। आप के हांथ में सब कुछ है लटकवा दीजिये उसे फांसी पर। पर इस विरोध को रोकिये। क्योंकि इस विरोध से न जाने कितने ऐसे लोग जीते जी मर रहे हैं जिनकी आखरी आस ही आप कि कचहरी है। ये सवाल तो था वकीलों से अब सवाल प्रशासन से है। आप किस प्रकार का रवैया अपनाना चाहते हैं वकीलों के विरुद्ध। रात में गैर कानूनी तरीके से तहसील को हस्तानांतरित करने का काम करते हैं। विरोध होता है तो लाठियां चलाते हैं। फिर विरोध होता है फिर लाठियां चलती हैं। सरकार जागती है और प्रशासन के ज़िम्मेदारों को तलब करती है। बस सरकार का भी काम पूरा हो जाता है। आखिर कब तक इस तरह आप सभी आम जनता को ढाल बना कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहेंगे। आखिर ये विरोध, ये आक्रोश किसके लिए है? बार काउंसिल ऑफ इंडिया का भी कार्य बहिष्कार करना कितना सही और कितना गलत है ये कोई और नहीं बल्कि अधिवक्ता भाई खुद ही तय करें। आखिर आप भी देश के एक स्तम्भ का अंग हैं। सवाल आप से भी बनते हैं। विरोध कब तक होगा ? एक बार जरा साथ में विरोध करने नहीं बल्कि विरोध को रोकने के लिए काम करें। ये देश आप का है। ये विरोध, ये बंद आपके अहम को तो शांत कर सकता है। पर क्या देश के अहम को बरकरार रख सकता है? क्या हमारे देश में विरोध को ही विकास का रास्ता समझा जाता है? एक बार विरोध नहीं, बंद नहीं साथ में देश के विकास और सुरक्षा के मार्गों को खोलने का काम करें।

मोदी की सरकार का तेवर नज़र नहीं आता

जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई पर पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह और फिर बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान दिया। लेकिन विपक्ष उनके बयान से संतुष्ट नहीं हुआ। दोनों ही नेताओं ने कहा कि उनके स्वर भी सदन के सदस्यों के आक्रोश के साथ हैं। प्रधानमंत्री ने सदन को बताया कि जम्मू कश्मीर में जो कुछ हो रहा है वो बिना केंद्र सरकार के मशविरे से हो रहा है। मोदी ने कहा, आक्रोश दल का नहीं, यह आक्रोश उस तरफ की बेंचों या इस तरफ की बेंचों का भी नहीं बल्कि पूरे देश का है। हम एक स्वर से अलगाववाद को समर्थन करने वालों के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करते हैं। इससे पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोक सभा को बताया कि उन्होंने जम्मू कश्मीर के गृह विभाग से मसर्रत आलम बट की रिहाई के बारे में स्पष्टीकरण माँगा है। बट के खिलाफ 1995 से कुल 27 मामले दर्ज हैं जिनमें देश द्रोह के भी मामले हैं। कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अगर भाजपा की सहमति के बिना जम्मू-कश्मीर सरकार ऐसे कदम उठा रही है तो भाजपा पीडीपी सरकार से अलग क्यों नहीं हो जाती ? मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जम्मू-कश्मीर में सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न होने का श्रेय पाकिस्तान और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस समेत अलगाववादियों को भी दिया, पीडीपी के विधायकों ने संसद हमला कांड में फांसी पर चढ़ाए गए आतंकवादी मोहम्मद अफजल के अवशेष मांगे और उसके बाद आलम की रिहाई हुई। इन पुरे हालातों को देख कर केंद्र सरकार का घिरना तय ही था। नरेन्द्र मोदी ने जो भी सदन में कहा वो सुनने में तो बहुत ही अच्छा लग सकता है पर शायद समस्या का यह निदान नहीं है। जिस जम्मू कश्मीर को हम देश की जन्नत कहते हैं वहां इस तरह की घटनाएं देश के लिए कभी भी सही नहीं हो सकती। रही बात भाजपा कि तो यह कहना किसी भी तरीके से ठीक नहीं जान पड़ता कि यह पूरा निर्णय सिर्फ और सिर्फ जम्मू कश्मीर की बीजेपी इकाई का है। नरेन्द्र मोदी जी आप को इस बात का भी ध्यान रखना होगा की जम्मू कश्मीर सरकार में बने रहने की आप की महत्वाकांक्षा कहीं पुरे देश में आप को नुक्सान न पहुंचा दे। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि जम्मू-कश्मीर सरकार बचाए रखने के लिए भाजपा कितनी नरमी बरतेगी? भाजपा के बयान और उनके स्पष्टीकरण में कहीं भी नरेन्द्र मोदी की सरकार का तेवर नज़र नहीं आता। जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र का सपना आप की सत्ता की चाहत कहीं सपना ही न बना रहने दे।