सरकारें आती हैं चली जाती हैं पर हम यहीं रहते हैं। देश के विकास की धारा में या तो हिस्सा बनकर या उसकी उम्मीद के लिए। पर इसका मुख्य कर्ता कौन है? सरकार। उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार को आज तीन साल पुरे हुए। सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाने में जुटी है और विपक्ष नाकामियां। पर इसका अर्थ क्या हुआ? क्या ये दिन भी वैलेंटाइन डे की तरह है कि जिसे अच्छा लगा वो तारीफ करे? जिसे नहीं वो बुराई। खैर ये राजनीति है हमे इसके लाभ और हानि से मतलब नहीं। हमे तो ये जानना है कि क्या 2012 में जो फैसला हमने लिया था वह सही था ? क्या वाकई में हमें जो सपने सपा सरकार ने दिखाए थे, जो संकल्प हमारे सामने लिए थे वो पूरे कर दिए हैं। कुछ पहलुओं पर देखें तो शायद कोशिश की गई है। पर कई ऐसे भी पहलू हैं जहां हमें वाकई धोखा सा लगता है। सरकार की तमाम ऐसी योजनाएं जो शायद सपा का पूर्ण बहुमत से सरकार में आने के मुख्य बिंदु थे उन्हें ही सरकार ने बंद कर दिया। उदाहरण के लिए बेरोजगारी भत्ता, लैपटॉप, टेबलेट, कन्या विद्याधन, आदि। मेट्रो, एक्सप्रेस-वे जैसी योजनाएं जनता को लुभा भी रही हैं। क्या वाकई में सिर्फ इसी के लिए हम सरकार चुनते हैं? शायद नहीं। हमारी ज़रुरत सुरक्षा, बिजली, पानी, रोजगार, जैसी छोटी छोटी चीज़ें हैं जिन्हें देने में अभी भी प्रदेश सरकार पूरी तरह से जनता के भरोसे पर खरी नहीं उतर सकी है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को अपने बेटे पर जितना भरोसा है उतना ही भरोसा प्रदेश की जनता ने भी किया था। पर परिवारवाद से उठ कर शायद इस बार भी सपा नहीं सोंच सकी है। 2017 का चुनाव अब बहुत दूर नहीं है और देश के सबसे बड़े प्रदेश की फिलहाल जो स्थिति बनी हुई है ऐसे में सपा को आत्म मंथन करने की ज़रुरत है। कहीं ऐसा न हो कि अगले विधानसभा चुनाव में सपा को अप्रत्याशित नतीजे देखने को मिलें। आप के बड़े बड़े अच्छे कार्यों पर मूल रूप की खामियां इस कदर भारी पड़ रही हैं जो आप की मुश्किलें बढ़ा देने के लिए काफी हैं। जैसे कि अपराध, परिवारवाद, कोई भी ठोस कदम न उठाना। यादव वाद भी इसका मुख्य कारण है। मुलायम सिंह यादव आप देश के बड़े ही माहिर राजनेताओं में से हैं। ऐसे में आप की सरकार का लगातार गिर रहा ग्राफ आप कि राजनीति पर भी सवाल खड़े कर रही है। जनता को जो भी दर्द मिला हो या उसे मरहम मिला हो। इसका फैसला तो 2017 में होगा। पर आप ज़रुर इसे ध्यान रखें कि अगर अभी नहीं चेते तो जनता फिर कभी शायद ध्यान न दे।
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