रविवार, 8 अप्रैल 2018

आप की लड़ाई

अन्ना आन्दोलन हुआ, कई बड़े लोग एक साथ आये। एक समूह तैयार हुआ। फिर फूट पड़ी और एक समूह दो भागों में बट गया। एक भाग अपने उसी उद्देश्य के साथ चल रहा था। दूसरा भाग जो कभी भी राजनीति में न आने की कसम खाए बैठे था वो राजनीति में आ गया। आम आदमी पार्टी बनाई और देश को गरीबी से मुक्ति तो नहीं पर कांग्रेस और भाजपा से मुक्ति दिलाने के लिए जनता के बीच में आ गए। खूब महनत हुई और शुरुआत दिल्ली चुनाव से की। चुनाव लड़े और अप्रत्याशित जीत भी दर्ज की। सरकार बनाई और अतिवादिता के चलते 49 दिन में ही सरकार गिरा भी दी। उतर पड़े लोक सभा चुनाव में और 4 सीट भी जीती। इसी बीच दिल्ली में सरकार न चलने के कारण पुरे देश में इसका विरोध भी झेला। दुबारा फिर दिल्ली में चुनाव हुए और इस बार और भी बेहतर प्रदर्शन कर सरकार बनायी। पर इस बार भी सरकार बनते ही फिर से पार्टी में विरोध उत्पन्न हो गया है। इस बार का विरोध कार्यकर्ता द्वारा नहीं बल्कि पार्टी को स्थापित करने वाले दो अहम लोगों का है। ये विरोध किसी और बात को लेकर भी नहीं, वही पुरानी बात कि पार्टी का मुखिया कौन ? पार्टी किसकी ? ये कोई पहली पार्टी नहीं है जिसमें इस बात को लेकर विरोध हुआ हो। इसी तरह का विरोध कांग्रेस भी झेल रही है और इसका हश्र भी वो देख चुकी है। हाल ही में बिहार में नितीश कुमार की पार्टी में कुछ ऐसा ही विरोध देखने को मिला था। जिसके चलते नितीश को भी काफी नुक्सान उठाना पड़ा। उत्तर प्रदेश में सपा पर भी इसी तरह के आरोप लगते रहे हैं और इसका नुक्सान भी उसे कई बार झेलना पड़ा है। ऐसे में आप पार्टी में आया ये विरोध एक बहुत बड़े निराशा का संकेत देता है। अगर वाकई यह पार्टी आम जनता के लिए ही बनी है तो इसमें अलाकाम, परिवार वाद जैसे आरोपों का लगना बेहद ही दुखद है। योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे नेता अगर पार्टी से हटाये जाते हैं या वो खुद पार्टी से त्यागपत्र देते हैं तो यह पार्टी के लिए जनता के बीच बहुत ही गलत सन्देश देगा। अरविन्द केजरीवाल को इस बात का ख्याल ज़रुर रखना चाहिए की फर्श से अर्श तक जितनी तेजी से आप पहुंची है अगर उसे गंभीरता से नहीं संभाला तो अर्श से फर्श तक आने में भी समय नहीं लगेगा।

   

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