बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

बदलाव नया हो तो स्वागत करें

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी को जब राष्ट्र को संबोधित किया था तब उन्होंने सरकार को ही देश के विकास का मात्र जि़म्मेदार नहीं बताया था  बल्कि कहा था कि जनता द्वारा भी प्रयत्न करने से ठोस सफलता प्राप्त हो सकती है।
कठनाइयों के कारण उन्नति के मार्ग पर बाधा न पड़े। उन्होंने तब कहा था की उत्पादन कार्यों के लिए धन जुटाया जाए और सत्ता के विरुद्ध नहीं सत्ता के साथ जनता देश का विकास करे।
26 जनवरी 2015 को 66 साल बाद एक बार फिर वही जगह वही देश वैसे ही लोग सब जनवरी की सर्द सुबह और रिमझिम बारिश में एकत्र हुए, बस कुछ चेहरे बदले कुछ अंदाज़ बदला। अंदाज़ इस लिए भी क्यों कि पहली बार कोई अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के गणतंत्र दिवस का मुख्य अथिति बना। पहली बार कोई महिला कमांडर ने मुख्य अतिथि को गार्ड ऑफ ऑनर दिया। तमाम सम्मान हुए गर्व की बात हुई, संविधान की महत्ता को फिर से बताया गया। बदलाव की बात की गई। ऐसे ही कुछ अंदाज़ में हम भी आप के बीच कुछ बदलाव करके हाजि़र हो रहे हंै। पर हमारे बदलाव की परिभाषा सिर्फ कलेवर बदलना नहीं है। सिर्फ अखबार का रूप बदलना नहीं है। हमारा बदलाव देश का बदलाव है या नहीं ये भी हमारी परिभाषा में नहीं है। अगर कुछ है तो वो है संविधान में दिए गए 11 साल के बच्चे को वो अधिकार जो उसे 26 जनवरी को तिरंगा बेंच कर 2 रूपए कमाने की बात नहीं कहता वो उस तिरंगे को शान से फहराने की आजादी देता है। वो युवाओं के जोश को सेल्फी खींचने की आजादी के साथ साथ देश की तस्वीर अपने अंदाज़ में बनाने की आजादी देता है। रात्रि भोज शाही हो पर 10 साल का बच्चा तिरेंगे को बेंच कर पेट पालने पर मजबूर न हो। वो नन्ना मुन्ना राही है देश का सिपाही है उसकी आँखों से हमे देश को विकसित देखना है। ऐसा होगा ये तय करने की जि़म्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं बल्कि हमारी आप की भी है। देश 66 साल में उस कठनाई के दौर से नहीं उबर पाया है आइये हम सब मिल कर उसे इस कठनाई के दौर से उठाये एक नई दिशा के साथ एक नई सोंच के साथ। और ये तभी संभव है जब इस देश के किसी गाँव का एक साधारण सा इंसान देश की राजधानी दिल्ली जाय और वहां बनी संसद के सामने माथा टेक के कहे- की ये वो मंदिर है जहा से मुझे इन्साफ मिलता है और यही इस देश का सबसे पवित्र और सबसे सिद्ध मंदिर है। साथ आप का और हमारा इस नए बदलाव का स्वागत करे।
जय हिंद।

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