भारत देश की राजधानी यानी कि दिल वालों की दिल्ली में माहौल पूरा चुनावी रंग में रंगा हुआ है। दिल्ली वैसे तो कोई अपनी एक संस्कृति के लिए नहीं बल्कि देश की हर संस्कृति हर रंग को अपने में समाये हुए है। जहां हर घर देश के अलग अलग प्रान्त से दिल्ली आये उम्मीदों का घर है। तो राह में चलता हर इंसान सिर्फ ये सोंचता है की इस महीने घर कितना पैसा भेजना है। देश की संसद भी वहीं है लिहाजा हर बड़ा नेता अपनी राजनीतिक करियर को बेहतर से बेहतर रखने की जुगत में रहता है। फिल हाल दिल वालों की दिल्ली में माहौल पूरा चुनावी हो गया है और देश की नहीं पुरे विश्व की निगाहें इस चुनाव पर हैं इसके कई कारण हैं। पुरे देश की किसी भी घटना पर इसी दिल्ली ने एक बार नहीं कई बार लोकतंत्र की आवाज़ को बुलंद किया है। देश का कोई भी मुद्दा हो दिल्ली की राय सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। हर विकास का केंद्र बिंदु यही दिल्ली ही है। लोकतंत्र के 4 स्तंभों का भी केंद्र बिंदु यही है। ऐसे में यहां की जनता क्या चाहती है किस तरह का बदलाव चाहती है इन सभी सवालों का जवाब सिर्फ राजनितिक पार्टियां ही नहीं बल्कि सारा देश जानना चाहता है। शीला दीक्षित को इस प्रदेश ने लगातार 3 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाये रखा पर अन्ना और अरविन्द केजरीवाल का आन्दोलन न जाने क्या जादू कर गया इन पर की शीला अपनी ही सीट हार गईं और कांग्रेस का बिलकुल ही सफाया हो गया जिसको इस प्रदेश की जनता ने अपने नेता के रूप में चुना वो भी महज 49 दिनों में ही चलते बने तमाम विरोध हुए और लोग इधर से उधर हुए और जिन जिन के लिए यह जनता एक हुई वो सभी अब अलग अलग दल में अपना राजनीतिक करियर को बनाने में जुट गये हैं पर इस प्रदेश की जनता का हाल फिलहाल उस कबीरा की तरह हो गया है जो ना तो काहू से दोस्ती कर पा रहा है और न काहू से बैर। रोज़ हर दल के बड़े बड़े दिग्गज जनता को अपने पाले में करने में जुटे हैं। कहीं कोई अपने को ज़मीनी नेता बता रहा तो कोई इस देश का सबसे बड़ा विकास का माॅडल। पर इस बार दिल वालों की दिल्ली का मूड क्या है उसका दिल क्या कहना चाहता है ये कोई भी नहीं जान पा रहा। शायद इसी लिए हम इसे अपनी राजधानी मानते है अपना केंद्र बिंदु मानते हैं। अच्छा है दिल्ली वालों हम भी इसी इंतज़ार में है की दिल्ली का दिल आखिर क्या चाहता है ।
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