शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

क्या जीत गए हम

बधाई हो सभी को। आखिरकार एक बार फिर भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया। भाई वाह खेल खेल होता है और कुछ नहीं। खैर मेरा मुद्दा ये नहीं कि क्रिकेट के महामुकाबले में जीत किसकी हुई। मेरा मुद्दा है की आखिर ऐसा क्या है जो भारत और पाकिस्तान के मैच को हम खेल से कहीं ज्यादा मानने लगते हैं। ऐसा क्या होता है कि ये दो देशों के खिलाडियों के बीच का मैच नहीं रहता बल्कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के हर नागरिक के बीच का मैच हो जाता है। क्यों हम अभी भी भारत और पाकिस्तान के बीच के मैच को सिर्फ खेल की ही नजर से नहीं देखते हैं। क्यों हम अभी भी इसे देश के सम्मान से जोड़ कर देखते हैं। और भी देशों से भारत का मैच होता है पर तब हम इसे अपने देश की आन क्यों नहीं समझते। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम आज भी पाकिस्तान से उतनी ही नफरत करते हैं जितनी आजादी के समय की थी? क्या आज भी हम राजनीतिक लड़ाई को अपनी व्यक्तिगत लड़ाई ही समझते आ रहे हैं। ये सच है कि सीमा पर पाकिस्तान की लगातार बढ़ रही नापाक हरकतें हमें उनसे दिल मिलाने को रोकती हैं। पर इसका ये मतलब भी नहीं कि खेल को भी हम उसी से जोड़ कर देखें। ये हो सकता है कि दूसरा मुल्क भी खेल से बढ़ कर देखता हो इसे पर इसका विपरीत भी हो सकता है। एक निजी न्यूज चैनल पर समाचार में देखने को मिला कि पाकिस्तान के लोग मैच हारने के बाद भी जश्न में नाच रहे थे। रिपोर्टर ने पूंछा तो एक बुजुर्गवार बोले क्या पाकिस्तान और क्या हिन्दुस्तान , भाई मैं तो पाकिस्तान से हूं और मेरी बीवी हिन्दुस्तान से। तो क्या हार क्या जीत हम तो दोनों में से किसी भी मुल्क के जीतने में खुश हैं। सुन कर अच्छा लगा और ये सुकून भी मिला कि चलो ये नफ्तर सिर्फ राजनीति के बीच की है और कुछ मुटठी भर आतंकवादियों की। इस लिए ये जरुरी है कि अगर हम आप दोनों देशों के बीच अमन की उम्मीद लागाये बैठे हैं तो हम आप को दोनों देशों के बीच खेले जा रहे किसी भी खेल को मुल्क की जीत हार से नहीं सिर्फ टीम की जीत हार माननी होगी।   

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