भूमि अधिग्रहण
अध्यादेश पर विरोध हुआ | धरना प्रदर्शन किया गया | सदन में विपक्ष ने भी खूब
हंगामा किया और सदन की कार्यवाही भी नहीं चलने दी | सरकार ने अपने कदम पीछे लिए और
अध्यादेश में संशोधन की बात पर सहमती बनाई | अच्चा हुआ ये विरोध किसी के भी अहम्
का मुद्दा नहीं रहा | अगर हम पुरे विरोध में देखें तो राजनितिक दल अन्ना हजारे के
साथ विरोध कर रहे थे | जन्तर मंतर से सरकार विरोधी खूब नारे लगे | और सरकार को
किसान विरोधी बताया गया | सही भी है गलत का विरोध होना भी चाहिए | २०१३ में
कांग्रेस द्वारा जब संसोधन बिल लाया गया था उस वक़्त बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय
अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था कि किसानों स ज़मीन लीज पर ली जाए न कि अधिग्रहित की
जाए | सुषमा स्वराज ने भी इसी बात को कहा था | पर जब खुद बीजेपी ने इसमें संशोधन
किया तब अपनी इस बात पर अमल क्यों नहीं किया | ऐसे में विरोध संभव था | पर पुरे
विरोध में सत्तरह राज्यों के किसान शामिल हुए और किसी ने भी किसी प्रकार का
उपद्रवी विरोध नहीं किया | नाराज़गी जताई , विरोध भी किया पर ढोल मंजीरे के साथ |
ये देश के वो लोग थे जिनकी समस्या को पूरा विश्व सबसे बड़ी समस्या मानता है | और
इनके भविष्य को लेकर चिंतित भी दिखता है | पर इनका विरोध का अंदाज़ को हम लोकतंत्र
के दुर्लभ पदयात्री कह सकते हैं | जिनका हज़ारों का हुजूम निकलता है तो एक पंक्ति
में , गाने बाजे के साथ , पुरे नियम का अनुपालन करते हुए और बिना किसी को कष्ट दिए
| ये अपना विरोध दरसाने निकलते हैं और हर १२ किलोमीटर दूरी तय करने के बाद १० मिनट
का आराम | वाह लोकतंत्र का बेहतरीन विरोध | आप की बात भी सुनी गई और कुछ रास्ता भी
निकलने की उम्मीद जगी | पर ऐसा सिर्फ आप से ही देखने को मिलता है ऐसा क्यों ? क्या
हमारे राजनितिक दल इससे कुछ सबक लेना चाहेंगे? ऐसा विरोध हमारे देश में कहीं और
क्यों नहीं देकने को मिलता |
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