शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

अरे जरा संभल कर

राम मनोहर लोहिया जी का कथन था कि युवा बात सुन कर नहीं बल्कि खुद अनुभव करके सीखता है | उनकी ये बात शहर के युवाओं को देख कर चरितार्थ होती दिखती है | शहर की वो युवा पीढ़ी जो बाइक की रफ़्तार को हवा से भी तेज़ रखना चाहती है | वो नहीं चाहती की कोई भी उनसे आगे चले | वो इस दुनिया के सिकंदर हैं और देश उनको सलाम करता है | जहाँ तक सोंच की बात है तो बहुत ही बढ़िया है | पर अगर उनके उद्देश्य को देखा जाए या यूँ कहें की उनके कार्य को देखा जाए तो ये भविष्य के साथ साथ उनके वर्त्तमान को भी खतरे में डाले हुए है | बहुत ज्यादा पुरानी बात न करूँ तो लखनऊ में ही अगर हम आप किसी भी स्कूल के बाहर खड़े हो कर देखलें तो ज्यादा संख्यां में बच्चे १ ही बाइक पर ३-३ लोग बैठ कर हवा से बाते करते नज़र आते हैं | इसके लिए तमाम मुहीम शासन ने चलाई और स्कूल प्रशां भी इसको लेकर काफी संजीदा दिखे | पर शायद अभिभावक अभी भी इसको लेकर संजीदा नहीं हो पाए हैं | जिस कारण से ऐसा अक्सर देखने को मिलता है | मुरादाबाद में क्रिकेटर मोहम्मद अजरुद्दीन के बेटे की तेज़ रफ़्तार बाइक चलने की वजह से जान चली गई | उत्तर प्रदेश के काबिना मंत्री के के बेटे की भी मौत हवा से भी ज्यादा तेज़ कार को चलने में चली गई | ये तो वो मामले हैं जो कहीं न कहीं बड़े घरानों के लोगो के है पर ये घटनाएं अब आम होती जा रही हैं | हाल ही में तेज़ बाइक चलने वाले युवाओं को रोकने के लिए राजधानी पुलिस ने तमाम तरह के अंकुश लगाने वाले नियम बनाये पर शायद उनकी रफ़्तार के आगे ये विवश हो गए | इस समस्या को ख़त्म करना अब तो मुश्किल सा लगता है पर उम्मीद यही की जाती है कि ये रुके | और इसे भी रोकने की ज़िम्मेदारी सिर्फ प्रसाशन की नहीं हमारी आप की भी है | क्यों की आप के बच्चे की हवा से बातें करने की ये चाह भले गलत न हो पर जिस तरह से ये हवा से बाते करना चाहते हैं वो कहीं से भी सही नहीं बताया जा सकता | दिक्कत आप को होगी या नहीं पर इस समाज को और समाज के भविष्य को इससे काफी दिक्कत है और उम्मीद सिर्फ आप और हम |

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