शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

कांग्रेस की आखरी उम्मीद

जब कुछ भी समझ नहीं आता और लगातार काम करते करते थक जाने पर अकसर हम कुछ दिन का आराम लेते हैं और नए सिरे से काम करने की भूमिका बनाते हैं। इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जो अचरज सा हो। पर जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से कुछ दिनों की छुट्टी मांगी यह कह कर की वो पार्टी के बेहतरी के लिए आत्म-मंथन करना चाहते हैं। तब राजनीति के सभी जानकार और राजनेता अचरज में पड़ गए कि आखिर ऐसी भी कोई छुट्टी होती है?  पर जब परिस्थितियां असाधारण हों तो ऐसे अनोखे कदम को अस्वाभाविक नहीं माना जाएगा, इसीलिए शायद अप्रैल में होने वाले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अधिवेशन से पहले राहुल गांधी के अवकाश पर जाने के निर्णय को काफी दिलचस्पी से देखा जा रहा है। इसकी वजह भी है और शायद राहुल गाँधी को इसकी ज़रुरत भी। कांग्रेस की पिछले लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त हुई, उसके बाद राज्यों में उसका आधार खिसकने का क्रम जारी रहा और इस महीने दिल्ली विधानसभा के चुनाव में तो वह एक भी सीट जीतने में नाकाम रही। इसके बाद पार्टी के अंदर से आवाज उठने लगी कि कांग्रेस के सामने अस्तित्व का संकट है। अगर अभी भी गंभीरता से नहीं सोंचा गया तो कांग्रेस के सामने अस्तित्व का संकट और भी गहराता जाएगा। कांग्रेस की फिलहाल जो दिक्कत है वो यह है कि नीति एवं कार्यक्रम के मामले में वह भटकाव की शिकार है। और सबसे बड़ा सवाल कि आखिर ऐसी क्या वजह रही जो राहुल की तमाम कोशिशों के बावजूद भी कांग्रेस जनता के दिल में अपनी जगह नहीं बना सकी। राजनीति में अगर आप को जनता के दिल में जगह बनानी है तो आपको जनता के सामने उसके हित के कार्यों का एक खाका तैयार करके रखना होगा। वो भी ऐसा नहीं कि जो यथार्थ में विश्वास करने योग्य न हो। सिर्फ सत्ता की चाह और जुनून ही काफी नहीं होता। इस राजनैतिक कला में अन्य पार्टी के नेता राहुल गांधी से कहीं ज्यादा काबिल दीखते हैं। अब समय इतना ही है कि कांग्रेस अगर अब भी राहुल गाँधी के नेतृत्व में आगे बढ़ना चाहती है तो राहुल गांधी को कोई न कोई ऐसा सूत्र तैयार करना होगा जो कांग्रेस की डूबती नांव को उबार सके। परन्तु यदि राहुल इसमें विफल होते हैं तो कांग्रेस को अपने नेतृत्व बदलाव में देरी नहीं करनी चाहिए।

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